मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू बीबीसी को दिए, एक इंटरव्यू में कहते हैं कि ‘हम मालदीव की धरती पर किसी विदेशी सेना के कदम स्वीकार नहीं कर सकते। यह वादा मैंने मालदीव की जनता से किया था, जिसके लिए मैं वचनबद्ध हूं। बता दें कि इस महीने की शुरुआत में मोहम्मद मुइज्जू ने राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद कई बार भारत-मालदीव संबंधो पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।

लम्बे समय से रहे हैं घनिष्ठ सम्बन्ध

भारत और मालदीव प्राचीनता से जुड़े जातीय, भाषाई, सांस्कृतिक, धार्मिक और वाणिज्यिक संबंध साझा करते हैं और इसके साथ ही दोनों ने घनिष्ठ, सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे हुए हैं। 1965 में मालदीव की आजादी के बाद उसे मान्यता देने और देश के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहला देश भारत था। भारत ने 1972 में सीडीए के स्तर पर और 1980 में रेजिडेंट उच्चायुक्त के स्तर पर अपना मिशन स्थापित किया। मालदीव ने नवंबर 2004 में नई दिल्ली में एक पूर्ण उच्चायोग खोला, जो उस समय दुनिया भर में इसके केवल चार राजनयिक मिशनों में से एक था लेकिन मालदीव में हाल ही में हुए चुनाव के बाद इस बात की संभावना बेहद कम है कि दोनों देशों के सम्बन्ध इसी तरह बने रहेंगे।

सेना की टुकड़ी को लेकर विवाद

मोहम्मद मुइज्जू की नाराजगी का मुख्य कारण मालदीव में तैनात भारतीय सेना की एक टुकड़ी को लेकर है, जिसके पास कुछ टोही विमान हैं। देखने में आया है कि पिछले दो सालों से मालदीव में तैनात भारतीय सेना के प्रति नाराजगी बढ़ी है। भारत ने, चीन के रवैये के कारण हिंद महासागर की निगरानी के लिए 75 सैनिकों को तैनात किया हुआ है। सामरिक दृष्टि की बात की जाए तो मालदीव भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए भारत, मालदीव से सम्बन्ध खराब नहीं करना चाहता है।

मालदीव में 30 हजार भारतीय

बता दें कि मालदीव में करीब 30 हजार भारतीय रह रहे हैं, मोहम्मद मुइज्जू की सत्ता में वापसी होने के कारण वहां रह रहे भारतीयों के लिए सुरक्षा की चिंता बढ़ गई है। इंडिया आउट के समर्थकों का कहना है कि भारत उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है, इसलिए मालदीव से भारतीय सैनिकों को हटाए जाने की मांग बार-बार उठती रही है।