मालदीव को लेकर भारत की सबसे बड़ी चिंता यह थी कि कहीं चीन इसे अपना सैन्य अड्डा ना बना ले. नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू अपने चुनावी अभियान में लगातार इस बात का जिक्र कर रहे थे कि सत्ता में आने के बाद वह देश से भारतीय सेना को बाहर कर देंगे. वह चीन के सबसे बड़े समर्थक माने जाते हैं. ऐसे में यहां चीनी हस्तक्षेप की चिंता बनी हुई थी.

अब खुद मुइज्जू ने यह स्पष्ट किया है कि वह भारतीय सेना को निकालने के अपने वादे पर कायम हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं होगा कि यहां चीनी सेना तैनात होगी. मोहम्मद मुइज्जू का शपथग्रहण समारोह 17 नवंबर के लिए शेड्यूल है. इस समारोह में उन्होंने भारत को भी निमंत्रण दिया है. केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू भारत की तरफ से उनकी शपथ समारोह में हिस्सा लेंगे. इससे पहले उन्होंने भारत को यह संदेश दिया है कि वे क्षेत्रीय संघर्षों से दूर रहकर अपने हितों पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं.

मुइज्जू चुनाव में चला रहे थे भारत विरोधी अभियान

मुइज्जू की चुनावी जीत काफी हद तक मालदीव में भारत के राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव के प्रति उनके विरोध के कारण हुई. अब उनका कहना है कि अपने देश को वह जियोपॉलिटकल राइवलरी में नहीं फंसाना चाहते. मुइज्जू ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की राइवलरी में फंसने के लिए उनका देश बहुत छोटा है. अब मुइज्जू का इरादा देश में तैनात लगभग 50 से 75 भारतीय सैनिकों की वापसी के संबंध में भारत के साथ औपचारिक बातचीत शुरू करने का है.

भारत ने मालदीव को समुद्री क्षेत्र में गश्त के लिए गिफ्ट के तौर पर तीन विमान दिए थे. इन्हीं ऑपरेशनों के लिए भारत ने यहां अपनी सेना भी तैनात कर रखी है. मुइज्जू ने कहा कि मालदीव के लोगों ने देश में किसी भी सैन्य उपस्थिति की अनुमति देने के लिए उन्हें वोट नहीं दिया और उनका लक्ष्य भारत सरकार के साथ इस मुद्दे को शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से हल करना है.