चार राज्यों के विधानसभा चुनावों की मतगणना कल देशभर ने देखी. बीजेपी ने तीन बड़े राज्य जिनमें से दो राज्य ऐसे थे जहां कांग्रेस ही सत्ता में थी (छत्तीसगढ़, राजस्थान), ऐसे राज्यों और मध्यप्रदेश में सत्ता पर कब्ज़ा जमाया. मतगणना के बाद कई सियासी चेहरों ने बीजेपी की रणनीति की तारीफ की, जबकि कई नेताओं ने कांग्रेस को नसीहत दी. इन्हीं में से एक हैं आरजेडी के राष्ट्रिय प्रवक्ता मनोज झा.

क्या बोले मनोज झा

राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा ने रविवार को कहा कि कांग्रेस को यह महसूस करने की जरूरत है कि भाजपा की आत्मकेंद्रित राजनीति का मुकाबला करने के लिए सबको एक साथ होने की जरूरत है. कई राज्यों में विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि पर बोलते हुए झा ने कहा की कांग्रेस को सबको साथ लेकर चलने की सोच रखनी होगी और टीम प्लेयर बनना होगा. उन्होंने कहा कि, हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे नेताओं ने ये माना है कि भारतीय गठबंधन में सभी सहयोगियों के बीच, कांग्रेस के पास सबसे बड़ा मौका है. कांग्रेस को यह महसूस करना चाहिए. झा ने कहा कि नरेंद्र मोदी के अहंकार का मुकाबला अहंकार से नहीं किया जा सकता.

एमपी का हार का कारण अखिलेश का अपमान

कल कई नेताओं ने यह माना कि कांग्रेस के नेताओं को एमपी में अखिलेश की पार्टी को अपने साथ शामिल करना चाहिए था. ना ही इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े घटक दलों में से एक के मुखिया का अपमान करके एमपी के लोगों के दिलों में अपनी छवी खराब करनी चाहिए थी. पत्रकारों से बातचीत में झा ने कहा कि मध्य प्रदेश जैसे राज्य में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव जैसे सहयोगियों के साथ कांग्रेस का व्यवहार अच्छा नहीं रहा, जिससे वह भाजपा को हराने में विफल रही. आपको बता दें, इस चुनाव में सपा ने भी 74 उम्मीदवार उतारे थे. कई जगहों पर सपा के उम्मीदवारों ने कांग्रेस के प्रत्याक्षियों को सीधी टक्कर दी थी, और इससे कांग्रेस को बेहद नुकसान हुआ, जिसका फायदा बीजेपी को मिला.

झा ने कहा कि चुनावों से पहले, भाजपा कहती थी कि राज्य के चुनाव राष्ट्रीय चुनावों से अलग होते हैं. मुझे उम्मीद है कि वे अपनी बात पर कायम रहेंगे और लोकसभा चुनावों के लिए तैयार रहेंगे, जिसमें मतदाता मोदी को जवाबदेह ठहराएंगे बढ़ती बेरोजगारी के लिए. जहां तक ​​बिहार में भाजपा की बात है, वे गौरव का जश्न मना सकते हैं और पटाखे फोड़ सकते हैं। लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश उन दिनों से पार्टी के गढ़ रहे हैं, जब यहां पांच सीटें जीतना मुश्किल होता था.