तृणमूल कांग्रेस की पूर्व सांसद महुआ मोइत्रा ने अपनी संसद सदस्यता रद्द किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई हैं. उन्होंने तर्क दिया है कि एथिक्स कमेटी के पास उन्हें निष्कासित करने का अधिकार नहीं था और इस बात पर जोर दिया कि व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी से पैसे लेने का कोई ठोस सबूत नहीं था. मोइत्रा ने हीरानंदानी और उनके पूर्व साथी जय अनंत देहाद्राई से जिरह की इजाजत नहीं दिए जाने पर भी उन्होंने नाराजगी जाहिर की.

मोइत्रा के निष्कासन के लिए पैनल की सिफारिश हीरानंदानी के उन बयान पर आधारित थी जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्होंने अडानी समूह को टारगेट करने वाले प्रश्न पूछने के लिए रिश्वत ली थी. मोइत्रा ने यह कहकर अपना बचाव किया कि उन्होंने पोर्टल पर अपने प्रश्न टाइप करने के लिए अपने कर्मचारियों से मदद के लिए उन्हें लॉगिन पासवर्ड दिए थे. इनके अलावा, महुआ मोइत्रा ने सत्तारूढ़ बीजेपी की आलोचना की, अगले तीन दशकों तक उनसे लड़ना जारी रखने की कसम खाई और उन पर संसद में अल्पसंख्यकों और महिलाओं को हाशिए पर रखने का आरोप लगाया.

एथिक्स पैनल पर लगाए अनुचित सवाल पूछने के आरोप

एथिक्स कमेटी ने नवंबर में महुआ मोइत्रा के साथ एक हंगामेदार बैठक के तुरंत बाद उनके निष्कासन की सिफारिश की थी, जिसमें उन्होंने पैनल के प्रमुख पर उनसे अनुचित सवाल पूछने का आरोप लगाया था. पैनल की रिपोर्ट 8 दिसंबर को लोकसभा में पेश की गई थी और उसी दिन संसद में इसपर वोटिंग भी हुई. हंगामेदार वोटिंग के बाद महुआ मोइत्रा की सदस्यता रद्द कर दी गई.

दानिश अली पर रमेश बिधूड़ी के टिप्पणी पर बोलीं मोइत्रा

अपने निष्कासन के बाद, मोइत्रा ने सत्तारूढ़ बीजेपी पर हमला करते हुए कहा कि वह अगले 30 सालों तक इससे लड़ना जारी रखेंगी. मोइत्रा ने कहा कि रमेश बिधूड़ी संसद में खड़े होकर दानिश अली के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की, बीजेपी के 303 में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं हैं. उन्होंने कहा कि बिधूड़ी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है. मोइत्रा ने कहा कि दानिश अली को गाली देते हैं, आप अल्पसंख्यकों से नफरत करते हैं, आप महिलाओं से नफरत करते हैं, आप नारी शक्ति से नफरत करते हैं.