मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के तौर पर मान्यता देने की मांग करने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. याचिका में पूजा-अर्चना के अधिकार की मांग की गई थी. मामले की सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसको लेकर पहले से ही सिविल वाद पेंडिंग है, जिनमें ऐसी मांग की गई है. ऐसे में इस मसले पर अलग से जनहित याचिका के तौर पर सुनवाई की जरूरत नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की. दरअसल अक्टूबर में इलाहाबाद हाइकोर्ट से इस याचिका को खारिज कर दिया गया था, जिसके बाद वकील महक माहेश्वरी ने उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. वकील ने कोर्ट से विवादित स्थल को श्रीकृष्ण जन्मस्थान के तौर पर मान्यता देने की मांग की थी.

वकील ने किया था ये दावा

वकील महक माहेश्वरी ने अपनी याचिका में दावा किया था कि वह स्थल इस्लाम के आने से पहले से है इसलिए उसका मालिकाना हक हिंदुओं को दिया जाना चाहिए. लेकिन कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जनहित याचिका की कोई आवश्यकता नहीं है. हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि आप चाहें तो इसे अलग से केस के तौर पर दर्ज करा सकते हैं.

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गौरतलब है कि मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में दावा किया गया था कि उसे श्रीकृष्ण मंदिर को तोड़कर बनाया गया है. याचिकाकर्ता ने कहा था कि उस मंदिर का निर्माण खुद श्रीकृष्ण के वंशज ने किया था. इसका प्रमाण राजस्व का दस्तावेज है. याचिका में यह भी दावा किया गया था कि शाही ईदगाह मस्जिद के नीचे मंदिर के कई प्रमाण हैं.

1968 के समझौते पर भी सवाल

याचिकाकर्ता ने 12 अक्टूबर 1968 को हुए समझौते पर भी सवाल उठाया था. श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ और शाही ईदगाह के बीच भूमि वितरण का समझौता हुआ था. याचिका में कहा गया है कि वह समझौता ही गलत था. श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ को यह समझौता करने का अधिकार नही्ं था.