मध्य प्रदेश के सीएम लिया अहम फैसला

शक संवत नहीं, अब मध्य प्रदेश में फिर होगा विक्रम संवत का शासकीय कलेंडर, पुरे 68 साल पहले पीएम नेहरु ने लागू की थी अंग्रेजी व्यवस्था, मध्य प्रदेश में नवगठित डॉ. मोहन यादव की सरकार ने एक बार फिर से शासकीय कलेंडर में विक्रम संवत को मान्यता दी है. मध्य प्रदेश में शदियों से विक्रम संवत को ही मान्यता मिलती रही है, लेकिन आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने पुरानी व्यवस्था को बदल कर अंग्रेजी व्यवस्था लागू कर दी थी. इसी व्यवस्था के तहत विक्रम संवत को भी दरकिनार कर शक संवत लागू किया गया था.

नया शासकीय कैलेंडर अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से नहीं होगा

डॉ. मोहन यादव की सरकार ने शपथ लेने के साथ ही इस व्यवस्था को बदलने का फैसला किया और अब नए कलेंडर छप कर तैयार हो गए हैं. मध्य प्रदेश सरकार की ओर से जारी आदेश पत्र के मुताबिक अब नया शासकीय कैलेंडर अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से नहीं होगा. बल्कि इसे विक्रम संवत के तहत तैयार किया गया है. इसमें विक्रम संवत की तिथियां और व्रत त्यौहार भी दिए गए हैं. बता दें कि उज्जैन के राजा सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत शुरू किया था. सैकड़ों सालों तक इसी संवत को पूरा देश मानता था.

1949 तक लागू था विक्रम संवत

मध्यप्रदेश का सरकारी कैलेंडर भी विक्रम संवत के अनुसार प्रिंट होता था. यह व्यवस्था आजादी के बाद 1949 तक रही. साल 1955 मे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक आदेश के तहत विक्रम संवत को हटा दिया था. उन्हीं इसके स्थानों पर अंग्रेजों द्वारा पोषित शक संवत को महत्व दिया था. तब से आज 68 साल बाद तक यही कैलेंडर प्रकाशित होता आ रहा है. अब मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने सम्राट विक्रमादित्य के विक्रम संवत को एक बार फिर से मध्यप्रदेश के शासकीय कैलेंडर के तौर पर लागू करने के आदेश दिए हैं.

नया शासकीय कैलेंडर तैयार

अधिकारियों के मुताबिक मुख्यमंत्री की मंशा के मुताबिक संस्कृति विभाग ने नए कैलेंडर छपवा लिए हैं. बता दें कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव खुद न्याय प्रिय राजा सम्राट विक्रमादित्य में काफी प्रेरित हैं. वह उच्च शिक्षा मंत्री रहते हुए भी राजा विक्रमादित्य के इतिहास से जुड़े संदर्भों पर काफी काम कर चुके हैं. उन्होंने विक्रमादित्य के नाट्य मंचन का आयोजन भी कराया था, जिसे पूरे देशभर में खूब सराहा गया. उनके प्रयासों से मध्यप्रदेश के पाठ्यक्रम में राजा विक्रमादित्य को शामिल किया गया.