विश्व की दूसरी बड़ी दीवाल 83 किमी लम्बी द ग्रेट बॉल ऑफ़ इंडिया की स्पेशल स्टोरी
भारतीय इतिहास संघ के पुरतावेताओ की दस सदस्यी टीम ने 11बी सदी के अबशेषो को खोज निकला और बताया की गोरखपुर के गोड़वाना राजा मान सिंह के किले में सेकड़ो देविया मंदिर होगे जिनके अबशेष पड़े हुए हैं वहीँ 11बी शताव्दी की चीन की दीवाल के बाद विश्व की दूसरीदीवाल हैं जो गोरखपुर से बाड़ी तक 83 किमी लम्बाई में हैं, जो जमीन से 10 से 12 फिट ऊँची और 12 फिट चौड़ी हैं जो विशव कि सबसे बड़ी चीन की दीवाल के बाद दूसरी दीवाल हैं लेकिन ऐसा माना जाता हैं की इस दीवाल को देखकर ही चीन की दीवाल का निर्माण हुआ है, बौद्ध यूनिवर्सिटी के छात्र आये शोध के लिए, बही पुरातात्विक धरोहर को संरक्षित करने की बात की।
वैसे तो रायसेन जिला पुरासम्पदाओ का अमूल्य खजाना हैं यहाँ पर साँची, भोजपुर, भीमबैठिका, जैसी विश्व प्रसिद्द धरोहर हैं, लेकिन भारतीय इतिहास संकल्न समिति मध्यभारत के तत्वाधान में पुरातत्वविद डॉ नारायण व्यास की 10 सदस्यी टीम ने विंध्याचल पर्वत का दौरा किया, बही उनके साथ बौद्ध यूनिवर्सिटी सांची के शोधकर्ता छात्र छात्राए भी थे, जिला मुख्यालय से 140 किलोमीटर दूर उदयपुरा तहसील के गोरखपुर में राजा मानसिंह के किले में शोधकर्ताओ ने किया शोध, यह किला 11 वी -12 वी सदी में बनाया होगा, इसी किले में सेकड़ो देवीय मंदिरो के अवशेष विखरे पड़े हुए हैं, इस किले में सूर्य , विष्णु लक्ष्मी और भैरो की बीस भुजाओ बाली प्रतिमा और कई मंदिरो के अवशेष पड़े हुए हैं अद्भुत हैं भेरो की प्रतिमा।
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यह 10 सदस्यी टीम में बौद्ध यूनिवर्सिटी सांची के छात्र छात्राए एवं राजीव लोचन चौबे ,सतयनारायण शर्मा और डॉ नारायण व्यास पुरातत्वविद सामिल थे, सवेक्षण दल ने पाया की पर्वत श्रंखला में एक पाषाण निर्मित दीवाल जो एक अद्भुत दीवाल हैं जो गोरखपुर से बाड़ी तक 83 लम्बाई में हैं यह दीवाल जमीन से 10 -से 12 फिट ऊँची और 12 फिट चौड़ी हैं जो विशव कि सबसे बड़ी चीन की दीवाल के बाद दूसरी दीवाल हैं, इस दीवाल कई अहम सचाई को अपने गर्भ में दवाये हुए हैं, इसे पुरातत्ववेता विश्व की दूसरी बड़ी दीवाल मान रहें हैं, इस दीवाल में लगाये पत्थर भारी हैं जिन्हे लोहे के साथ शीशा धातु से जोड़ा गया हैं, यह परमार काल की बनाई गई हैं इसे गोड़वाना सुरक्षा सीमाओ से भी जोड़ा जा रहा हैं, पुरात्तव विद राजीव लोचन चौबे और डॉ नारायण व्यास पुरातत्वविद इसे अद्भुत मान रहें हैं।
इस 83 किमी दीवाल के रहस्य को खगालने में पुरात्तवविद लगे हुए हैं इसे खबर को हमने सबसे पहले प्रमुखता से दिखाया था आज इस दीवालके लिए भारत के पुरतावेताओ के नजर लग गई हैं यह विशवविश्व की चीन की दीवाल के बाद दूसरी बड़ी दीवाल हैं, यह क्षेत्र और किले में कई रहस्य छुपे हुए हैं सघन शोध के बाद इतिहास की कई परते खुलेगी फरवरी माह में इतिहासकार और पुरातत्वबिद सघन शोध किया, यह क्षेत्र के आसपास भी इसे स्थान की मूर्तिया मंदिरो की शोभा बड़ा रहीं हैं, नाग नागिन की मानव रूप की यह प्रतिमा भी उसकी काल की हैं जब यह दीवाल बनाई गई होगी, यह दीवाल परमार एवं कलचुरी शासकों में युद्ध होते थे उसी लिहाज से सुरक्षा दीवाल बनाई है.
यह दीवाल 11-12वी सदी में बनाई गई है, यह दीवाल गोरखपुर से बाड़ी तक गई है जो महज 83 किलोमीटर लंबी है, बही बड़े बड़े पत्थरो को एंटर लॉकिंग बिधि से जोड़ा गया है, बही किले के अबशेष पड़े हुए है बही मंदिर मूर्तियों के अबशेष पड़े हुए है कई कीमती मूर्तियां चोरी हो गई है, अंतिम शासक राजा मानसिह एवं लक्ष्मण सिंह के बंशज आज भी गोरखपुर में निवासरत है, बही प्राचीन सूर्य की मूर्ति है जिसे लोग काली की मूर्ति के नाम से पूजते है जहां आज भी तांत्रिक ओझा बैठक करते है, सांची बोद्ध यूनिवर्सिटी के छात्रों ने पुरतावेताओ के साथ शोध किया, आज इस अनूठी धरोहर को संरक्षित करने की आवश्यकता हैं.