प्रधानमत्री मोदी कई दफा ये कह चुके हैं कि देश में चार जातियां हैं. गरीब, युवा, महिलाएं और किसान. इन्हीं में से एक ‘जाति’ (किसानों) की बड़ी आबादी दिल्ली अपनी मांगों को लेकर कूच कर रही है. मुद्दे भले अलग हों पर किसानों का आक्रोश केवल केवल भारत तक महदूद नहीं. यूरोप के कई देशों में महीने भर से किसानोंं ने खेती से जुड़े मुद्दों पर जैसे एक क्रांति छेड़ दी है.
यूरोप में वैसे तो खेती-किसानी में लगे लोगों की संख्या बहुत बड़ी नहीं है मगर किसानों की दखल वहां की राजनीति और नीति में ठीक-ठाक है. तभी यूरोपीय यूनियन को अपनी एक तिहाई बजट किसानों की सब्सिडी पर खर्च करना पड़ता है. भले यूरोपीय यूनियन की जीडीपी में खेती-बाड़ी का हिस्सा डेढ़ फीसदी से भी कुछ कम हो और फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों में बमुश्किल 1 फीसदी से 2 फीसदी लोग खेती पर निर्भर हैं जबकि भारत में ये संख्या 44 फीसदी के करीब है.
कहां-कहां किसान प्रदर्शन कर रहें:-
किसानों का विरोध प्रदर्शन कम से कम यूरोप के 10 देशों की सरकारों की मुसीबत बढ़ाए हुए हैं. ये देश हैं – फ्रांस, जर्मनी, इटली, पोलैंड, स्पेन, ग्रीस, रोमानिया, बेल्जियम, पुर्तगाल, लिथुआनिया. विरोध की वजहें अलग भी हैं लेकिन कहीं-कही ये एक दूसरे से मिलती-जुलती भी हैं. किसानों ने अपनी बातों को मनवाने के लिए तरह-तरह से प्रदर्शन किया जिसमें संसद के घेराव, चक्का जाम से लेकर सुपरमार्केट्स, डिस्ट्रिब्यूशन सेंटर्स के बाहर धरना शामिल रहा.
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बेल्जियम में जहां हजारों की संख्या में किसान यूरोपियन यूनियन की संसद के बाहर जुट गए तो जर्मनी की राजधानी बर्लिन और इस जैसे दूसरे बड़े शहरों में किसानों ने सड़क पर खाद छींटकर अपना एहतजाज दर्ज कराया और पूरी सड़के जाम कर दी. फ्रांस की अगर बात करें तो यहां उपज की कम कीमतों को लेकर अन्नदाताओं का गुस्सा इस कदर भड़का कि वे राजधानी पेरिस में जुटे और पुतलों को पेड़ से लटका दिया. ऐसा कर उन्होंने आत्महत्या से मरने वाले किसानों की तरफ दुनिया का ध्यान खींचने का प्रयास किया और इन किसानों को श्रद्धांजलि दी.