Section 6A of Citizenship Act: सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून, 1955 के भाग 6A की संवैधानिकता पर फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने 4:1 से धारा 6A की संवैधानिकता को बरकरार रखा है.

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अगुवाई वाली बेंच में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे. बेंच के एकमात्र जज जस्टिस जेबी पारदीवाला ने ही धारा 6A को असंवैधानिक माना है.

नागरिकता कानून का भाग 6A असम के भीतर बांग्लादेश से आने वाले अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर लाया गया कानून असम समझौते के तहत बनाया गया था.

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1971 के बाद जो भी लोग असम में बांग्लादेश से घुसे हैं, उनको अवैध प्रवासी घोषित माना जाएगा.

बेंच ने सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस MM सुन्दरेश, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने 17 अक्टूबर, 2024 को यह निर्णय सुनाया, जस्टिस जेबी पारदीवाला ने फैसले से असहमति जताई है.

फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बांग्लादेश (Bangladesh) के साथ सीमा साझा करने वाले राज्यों में से असम को अलग तरह से देखना सही था, क्योंकि यहां की स्थानीय आबादी में अप्रवासियों का प्रतिशत ज्यादा है.

कोर्ट ने फैसले को बताया सहीं

पश्चिम बंगाल में 57 लाख अप्रवासी हैं, जबकि असम में 40 लाख अप्रवासी बसे हैं. फिर भी असम की कम आबादी को देखते हुए ऐसा करना सही था, क्योंकि बंगाल की तुलना में असम का जमीनी इलाका काफी कम है.

क्या है नागरिकता कानून की धारा 6A?

असम एकॉर्ड के बाद संसद ने कानून बनाया था कि 1966 से पहले बांग्लादेश से आए भारतीय मूल के सभी लोग भारतीय नागरिक होंगे जबकि 1966 से 25 मार्च, 1971 के बीच आए लोग नागरिकता लेने के लिए आवेदन कर सकेंगे, इसे 1955 के नागरिकता कानून में 6A के तौर पर जोड़ा गया था.

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ बाकी तीन जजों ने पाया कि राजनीतिक समस्या का इस तरह कानूनी समाधान कर दिया गया था और संसद को इस तरह का क़ानून बनाने का अधिकार था.

बता दें कि कोर्ट ने उन आपत्तियों को नकार दिया कि संसद को इस तरह का विशेष कानून बनाने का अधिकार नहीं था.