गृह विभाग को दिए स्पष्ट निर्देश

आदतन अपराधी जो बार बार अपराध करके छूट जाए तो उसकी रद्द करें जमानत और 437,438 ,439 धारा लगाकर उस पर कार्रवाई करें

मध्यप्रदेश, भोपाल गंभीर अपराधों एवं आदतन अपराधियों की जमानत कार्यवाही के संबंध में शासन के संज्ञान में आया है कि विभिन्न जिलों में ऐसे आदतन अपराधी जिन पर भारतीय दंड संहिता अथवा अन्य विशेष/स्थानीय विधियों के तहत सात वर्ष या अधिक के कारावास से अधिक दंडनीय अपराध अथवा भादवि के अध्याय vi, xvi एवं अध्याय xvii के अंतर्गत दण्डनीय अपराध के आरोप हैं, माननीय न्यायालय से प्रतिभूति (जमानत ) पर मुक्त होने के पश्चात पुनः समान प्रकृति के अपराध घटित करते हैं अथवा साक्ष्य को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं, जिस कारण समाज में लोक व्यवस्था विपरीत रूप से प्रभावित होने की आशंका रहती है, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (1974 का 2) की धारा 437 ( 3 ) में गंभीर अपराध के आरोपियों की जमानत पर अधिरोपित की जाने वाली शर्तो के संबंध में निम्नानुसार विधिक प्रावधान वर्णित जिसकी अवधि सात वर्ष तक की या उससे अधिक की है, दण्डनीय कोई अपराध या भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45 ) के अध्याय 16 या अपराध 17 के अधीन कोई अपराध करने या ऐसे किसी अपराध का दुष्प्रेरण या षडयंत्र या प्रयत्न करने का अभियोग या संदेह है, उपधारा (1) के अधीन जमानत पर छोड़ा जाता है तो न्यायालय शर्तों को अधिरोपित करेगा.
13 (क) यह कि ऐसा व्यक्ति इस अध्याय के अन्तर्गत निष्पादित बन्धपत्र की शर्तों के अनुसार उपस्थित होगा, (ब) यह कि ऐसा व्यक्ति उस अपराध, जैसा जिसका वह अभियुक्त या अपराध करने हेतु संदेहास्पद है, कोई अपराध नहीं करेगा, और (ग) यह कि ऐसा व्यक्ति प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा ताकि उसे न्यायालय अथवा किसी पुलिस अधिकारी को ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाया जा सके अथवा साक्ष्य को बिगाड़ा जा सके,
एवं न्यायहित में अन्य ऐसी शर्तों को भी अधिरोपित कर सकेगा, जो वह उचित समझता है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 ( 2 ), धारा 439 ( 1 ) के तहत माननीय उच्च न्यायालय अथवा सत्र न्यायालय द्वारा भी जमानत आवेदन के निराकरण के समय दं.प्र.सं. की धारा 437 (3)में वर्णित शर्ते अधिरोपित की जा सकती हैं, दं.प्र.सं. की धारा 437 ( 5 ) एवं धारा 439 (2) के तहत क्रमशः न्यायिक दंडाधिकारी न्यायालय द्वारा अथवा उच्च न्यायालय/सत्र न्यायालय द्वारा जमानत आदेश को निरस्त करने और जमानत पर छोड़े गये व्यक्ति को गिरफ्तार करने अभिरक्षा में लिए जाने के आदेश जारी करने की अधिकारिता वर्णित है.