लोकसभा चुनाव की जंग को जीतने के लिए बीजेपी हरसंभव कोशिश में जुटी है. मोदी सरकार ने ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम'(सीएए) के नियम को लागू करने की रूप रेखा बना ली है, जो 2024 में बीजेपी के लिए मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मामले में होमवर्क पूरा कर लिया है. संभव है कि 26 जनवरी से पहले सीएए के नियम लागू हो जाएंगे.

सीएए लागू होने के बाद पकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए गैर-मुस्लिमों को नागरिकता मिलना आसान हो जाएगा, जिसके में सबसे ज्यादा फायदा बांग्लादेश से आकर पश्चिम बंगाल में बसे हिंदुओं खासकर मतुआ समाज के लोगों को होगा. इसका सीधा सियासी फायदा 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिल सकता है, क्योंकि मतुआ समुदाय लंबे समय से सीएए के नियम को लागू करने की मांग करता रहा है.

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मोदी सरकार ने दूसरी बार सत्ता में आते ही दिसंबर 2019 में सीएए अधिनियम को पारित किया था, जिसे दूसरे दिन ही राष्ट्रपति से मंजूरी भी मिल गई थी. सीएए के नियमों के तहत भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देश, जिनमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम प्रवासी लोगों को नागरिकता मिल जाएगी. इन छह समुदायों में हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी शामिल हैं.

चुनाव से पहले लागू हो सकता है CAA

भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए पहले किसी भी व्यक्ति को कम से कम 11 साल तक भारत में रहना जरूरी था, लेकिन सीएए के नियम तहत भारत की नागरिकता हासिल करने की अवधि 1 से 6 साल हो गई है. केंद्र की मोदी सरकार अब लोकसभा चुनाव से पहले सीएए को लागू करने की रणनीति बनाई है, क्योंकि पड़ोसी देश से आए हुए गैर-मुस्लिम प्रवासी सीएए को जल्द से जल्द लागू करने की डिमांड कर रहे थे. खासकर, पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय के लोगों लगातार मांग कर रहे थे.

CAA का कई राजनीतिक दलों ने किया विरोध

संसद से पास और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद सीएए कानून, अभी तक इसलिए लागू नहीं हो सका, क्योंकि सीएए के तहत नियम बनाए जाने थे. राज्यसभा और लोकसभा में अधीनस्थ विधान पर संसदीय समितियों ने क्रमशः 31 दिसंबर, 2022 और 9 जनवरी, 2023 तक केंद्रीय गृह मंत्रालय को विस्तार दिया था. इसके बाद दोबारा से संसदीय समितियों ने विस्तार को मंजूरी दी. सीएए को लेकर देश में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिली थीं. विपक्षी के कई राजनीतिक दलों ने भी इसका विरोध किया था. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 200 से अधिक जनहित याचिकाएं दायर की गई थीं. इन सबके बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह यह कहते रहे कि सीएए हर सूरत में लागू किया जाएगा.

‘CAA को लागू करना बीजेपी की प्रतिबद्धता’

सीएए नियम बनाने के लिए साल 2020 के बाद गृह मंत्रालय नियमित अंतराल पर कई संसदीय समितियों से एक्सटेंशन लेता रहा है. सीएए के नियम को जारी करने में हो रही देरी के कारण केंद्रीय गृह मंत्रालय पर सवाल भी उठते रहे. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 27 दिसंबर 2023 को कानून के कार्यान्वयन को लेकर कोलकाता में बयान दिया था. उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि सीएए को लागू करना बीजेपी की प्रतिबद्धता है और सीएए कार्यान्वयन कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि देश का कानून है. वहीं, अब गृह मंत्रालय के अधिकारी ने सीएए के नियमों को लोकसभा चुनाव से पहले लागू करने का ऐलान कर दिया है. केंद्र सरकार जल्द ही सीएए के लिए नियमावली जारी करेगी.

मतुआ समुदाय की स्थायी नागरिकता की मांग

गृह मंत्रालय के मुताबिक सीएए का फायदा देश भर में मिलेगा, लेकिन नौ राज्यों में ज्यादा होगा. पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता का पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र शामिल हैं. पश्चिम बंगाल में बंग्लादेश से आए मतुआ समुदाय के लोग काफी समय से मांग कर रहे हैं, जिनकी आबादी अच्छी खासी है. यह हिंदू शरणार्थी हैं, जो देश के विभाजन के दौरान और बाद के दशकों में पड़ोसी देश बांग्लादेश से आए हैं. मतुआ समुदाय में स्थायी नागरिकता की काफी समय से मांग है. सीएए के तहत इनको नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा. बीजेपी इसमें अपना सियासी फायदा देख रही है. ऐसे में 2024 के चुनाव से पहले सीएए लागू कर मोदी सरकार सियासी फायदा उठाने की स्ट्रैटेजी बनाई है.

CAA अधिनियम बीजेपी का अहम हथियार

अमित शाह ने 27 दिसंबर को बंगाल में सीएए लागू करने की बात कही थी. 26 नवंबर को उत्तर प्रदेश के ठाकुरनगर में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने बड़ा बयान दे दिया है. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम यानी CAA का फाइनल ड्राफ्ट अगले साल 30 मार्च तक तैयार होने की उम्मीद है. पिछले कुछ सालों में सीएए को लागू करने की प्रक्रिया में तेजी आई है 2014 के बाद से ही जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है तब से बीजेपी अपने हिंदुत्ववादी राजनीति को धार देने में जुटी हुई है. पार्टी को इसका फायदा भी मिल रहा है. अयोध्या में जहां रामलला को 22 जनवरी को विराजमान किया जाएगा. बीजेपी ने साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए एजेंडा सेट कर दिया है. नागरिकता संशोधन कानून बीजेपी की इसी राजनीति का सबसे बड़ा हथियार हो सकता है.

बंगाल में बीजेपी को मिल सकता है फायदा

पश्चिम बंगाल में बीजेपी मतुआ समुदाय पर पकड़ बनाकर ही अपनी सियासी जड़े जमाने में कामयाब रही थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 18 सीटें जीतने में कामयाब रही थी जबिक उसे 2014 में महज दो सीटें मिली थी. इसके बाद 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बन गई थी. बीजेपी को मिली जीत के पीछे मतुआ समुदाय की अहम भूमिका रही थी, पर विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी ने खुद को मजबूत करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. बीजेपी में गए नेताओं की घर वापसी ममता ने कराया, जो बीजेपी के लिए बंगाल में विस्तार करने की उम्मीदों पर बड़ा झटका था. ऐसे में बीजेपी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सीएए नियम का दांव चला है, जो बीजेपी के लिए बंगाल में सियासी संजीवनी साबित हो सकता है.

बंगाल में मतुआ समुदाय की आबादी करीब 30 लाख है तथा नादिया, उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों में कम से कम लोकसभा की चार सीट पर इस समुदाय का प्रभाव है. ममता बनर्जी अगर सीएए के नियम को लागू करने में किसी तरह की देरी करती या फिर अड़चन डालती है तो बीजेपी के लिए उन पर मुस्लिम परस्ती का आरोप लगाकर कठघरे में खड़ा कर सकती है. यही वजह है कि बीजेपी अब खुलकर खेलने लगी है, जिससे उसे सियासी फायदा मिलने की उम्मीद दिख रही है. बीजेपी को बंगाल ही नहीं पंजाब और दिल्ली में भी सिख वोटों के बीच पैठ बनाने में मदद मिल सकती है, जो खासकर पकिस्तान और अफगानिस्तान से आकर गैर-मुस्लिम बसे हैं.