30 साल पहले बन कर तैयार हुआ राम मंदिर का डिज़ाइन

इन दिनों सबकी ज़ुबान पर सिर्फ एक नाम है और वो है अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर का नाम, जिसकी पहली मंजिल तैयार हो चुकी है. 22 जनवरी को इस मंदिर के गर्भ गृह में रामलला विराजमान भी हो जाएंगे. ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि बिना सरिया, सीमेंट के बन रहे इस मंदिर की डिजाइन किसने और कब बनाई. अब जब सवाल उठा है तो इसका जवाब भी जान लेना जरूरी है. भगवान राम के इस मंदिर की डिजाइन साल 1990 में चंद्रकांत सोमपुरा ने तैयार किया था.

चंद्रकांत सोमपुरा खानदानी आर्किटेक्ट हैं और मंदिरों की डिजाइन तैयार करने वाली यह उनकी 15वीं पीढ़ी है. चंद्रकांत सोमपुरा व उनके परिवार ने इससे पहले सोमनाथ मंदिर, मुंबई में स्वामीनारायण मंदिर और कोलकाता में बिड़ला मंदिर को डिज़ाइन किया था. अब उनके द्वारा तैयार किए गए अयोध्या के श्रीराम मंदिर की डिजाइन एक बार फिर से चर्चा में है. इस डिजाइन के मुताबिक भगवान राम का यह मंदिर 161 फीट ऊंचा होगा और करीब 28,000 वर्ग मीटर में एरिया में होगा.

33 साल पहले बन चुकी थी मंदिर की डिजाइन

चंद्रकांत सोमपुरा कहते हैं कि विश्व हिंदू परिषद के पूर्व प्रमुख अशोक सिंघल ने के कहने पर 33 साल पहले उन्होंने राम मंदिर का डिजाइन तैयार किया था. उन्होंने 1990 में इस डिजाइन को कुंभ मेले के दौरान साधु संतों के सामने पेश किया और खूब विचार विमर्श के बाद इस डिजाइन को मंजूरी मिल गई थी. हालांकि मंदिर-मस्जिद का विवाद जारी रहने की वजह से उस समय इस डिजाइन पर आगे काम नहीं हो सका.

कुछ मामूली बदलाव के साथ हो रहा काम

अब साल 2020 में कोर्ट का फैसला आने के बाद इस डिजाइन में मामूली बदलाव कर वर्तमान मंदिर का निर्माण किया जा रहा है. बताया जा रहा है कि आर्किटेक्ट चंद्रकांत सोमपुरा ने अब तक देश में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में 200 से अधिक मंदिरों की डिजाइन तैयार कर चुके हैं. इनमें से ज्यादातर मंदिर बन भी गए हैं. बताया जा रहा है कि जब सोमनाथ मंदिर का निर्माण हुआ तो उसके लिए चंद्रकांत सोमपुरा के दादा प्रभाशंकर ओघड़भाई ने डिजाइन तैयार किया था.

हजारों साल तक मजबूती से खड़ा रहेगा मंदिर

अब आपको बता दे की डिज़ाइन को बनाने वाले सोमपुरा कहते हैं राम मंदिर की डिजाइन यूनिक है और इसमें कहीं भी ना तो लोहे का इस्तेमाल किया जा रहा है और ना ही सीमेंट लगेगा. राम मंदिर के लिए बंसी पहाड़पुर के गुलाबी पत्थर और बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है. उन्होंने दावा किया कि यह मंदिर हजारों साल तक सुरक्षित रहेगा. उन्होंने कहा कि बांसी पहाड़पुर का पत्थर जितना पुराना होगा, उतना ही मजबूत होता जाएगा. इसलिए मंदिर को मजबूती देने के लिए स्टील के इस्तेमाल की कोई आवश्यकता ही नहीं है.