जनवरी 2015 में इंदौर में एक साधारण परिवार में दूसरी बेटी की किलकारी गूंजी थी। अस्पताल में खुशी थी, लेकिन मां-बाप दुखी थे। तीन साल की एक बेटी पहले से ही थी, फिर एक और बेटी पैदा हो गई। उसे देखकर उन्हें दुख, पीड़ा नहीं थी, बल्कि गुस्सा ज्यादा था। वजह- जन्म से उसका एक कान ही नहीं था। इस कुदरती फैसले को दोनों बोझ समझ बैठे। जन्म के बाद से ही उसे देखकर दोनों उसे नजर दिखाते थे। यही बात होती थी कि एक बेटी को तो पाल लेंगे, इसे कैसे जिंदा रखेंगे। इसका एक कान भी नहीं है। क्या करेगी बड़ी होकर। कोई शादी भी नहीं करेगा इससे…।

उनकी यही दिमागी दरिंदगी एक दिन इस हद तक चली गई कि बिना कान के जन्म लेने वाली अपनी ही बेटी को इन्होंने घर में संडासी से मार डाला। फिर बाहर जाकर एक गोदड़ी में लपेटकर फेंक दिया।

अदालत ने छोटी बेटी को इस तरह मार डालने के जुर्म में इन मां-बाप को उम्रकैद की सजा दी है। बड़ी बेटी चौथी कक्षा की परीक्षा दे रही है, वह एक आश्रम में है। उसे एहसास भी नहीं है कि उसके मां-बाप ने क्या किया, अदालत ने उन्हें ऐसी सजा सुनाई है कि उसे बरसों बरस और अनाथों की तरह ही रहना है।

तीन महीने की बच्ची की निर्मम हत्या के बाद लावारिस हालत में उसे फेंक दिया गया था। आरोपी मां संगीता रावल और पिता पप्पू निवासी विनोबा नगर खजराना बेफ्रिक से हो गए, लेकिन आसपास के लोगों ने जब बच्ची का शव देखा तो पहचान उजागर हो गई। 24 घंटे में ही खुलासा हुआ कि यह शव किसकी बच्ची का है।

संगीता और पप्पू से इस बारे में पूछताछ हुई ताे वे पहले तो निमोनिया को कारण बताने लगे। फिर बातें घुमाईं, लेकिन अदालत में यह साबित हुआ कि यदि निमोनिया से मौत होती, तो कोई भी मां-बाप अपने बच्चे का सही तरीके से अंतिम संस्कार करते, यूं फेंक नहीं देते। इस आधार पर भी कोर्ट ने सख्ती से फैसला दिया। आरोपियों ने बच्ची की गुमशुदगी तक नहीं दर्ज कराई। यही सबसे बड़ा संदेह का कारण बना।

इस कहानी मुख्य किरदार है बुंदा बाई। जिसने बच्ची की डिलीवरी कराई थी। इसने पुलिस को बताया था कि डिलीवरी उसी ने कराई थी और बच्ची का एक कान नहीं था। उसी के आधार पर पुलिस आरोपी मां-बाप तक पहुंची थी, लेकिन अदालत के सामने वह पलट गई। उसने कह दिया कि उसे ध्यान नहीं। इसके बावजूद डीएनए रिपोर्ट में यह साबित हो गया कि मां-बाप वही है जो बुंदा बाई ने बताए हैं, उससे इनकी बयान पलटने की बात पकड़ी गई।

अपनी छोटी बहन की हत्या के कातिल मां-बाप की सजा बड़ी बेटी भोग रही है। पिछले पांच साल में वह आश्रम में अनाथों के बीच है। आश्रम के केयर टेकर से जब भास्कर ने मासूम बच्ची के बारे में बात की तो पता चला कि उसे इस बात की जानकारी नहीं है कि उसके माता-पिता जेल में किस तरह के गुनाह के लिए जेल हैं। जब दोनों को पुलिस ने 6 साल पहले गिरफ्तार किया था, तब इस बच्ची की उम्र महज तीन साल थी। उसे यह भी नहीं पता कि दो दिन पहले अदालत ने उसके माता-पिता को ताउम्र कैद सुनाई है।

आश्रम के केयर टेकर ने बताया कि मासूम बच्ची अभी एमपी बोर्ड की चौथी कक्षा में है। हालांकि, पढ़ने में बहुत होशियार है। इसे साल में दो बार कोर्ट के आदेशानुसार उसके माता-पिता से मिलवाने के लिए केंद्रीय जेल इंदौर ले जाया जाता है। वहां भी वो हमेशा दोनों से साथ चलने की ही जिद करती है। आश्रम में भी बातचीत के दौरान कहती है कि मैं अपने मम्मी-पापा के साथ अपने घर में रहना चाहती हूं। उसे यह अहसास नहीं कि उसके मां-बाप ने जो जुर्म किया है, उसमें यह संभव नहीं है।