राजस्थानराज्य सरकारों ने ये नया तरीक़ा ईजाद किया है या कह सकते हैं नया रास्ता खोजा है। वैसे तो क्या गुजरात, क्या अन्य राज्य सरकारें, सब की सब अपनी ग़लतियों या कमियों पर पर्दा डालने के लिए ऐसा करती हैं। लेकिन उस पूरे उपक्रम में राजस्थान सरकार ने सभी को पीछे छोड़ दिया है। कोई भी प्रतियोगी परीक्षा हो, राजस्थान में इंटरनेट बंद कर दिया जाता है। बहाना ये कि इंटरनेट बंद करके वे पेपर लीक होने से रोक रहे हैं या नक़ल होने से रोक रहे हैं। हैरत की बात ये है कि प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर यहाँ फिर भी लीक हो जाते हैं।

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राजस्थान के ही कुछ नेता, संगठन और प्रतियोगी परीक्षाओं के छात्र तक कह रहे हैं कि पेपर इंटरनेट या वॉट्सएप के कारण नहीं, बल्कि सरकार की अलमारियों से लीक हो रहे हैं। सरकार है कि समझने को तैयार ही नहीं है। उससे, उसके अफ़सरों से पेपर्स की सुरक्षा काम संभलता नहीं, और वे हर बार कभी, पूरे तो कभी आधे राजस्थान का इंटरनेट बंद करके बैठ जाते हैं।

लोगों को इससे कितनी परेशानी होती है? कितने लोगों के कितने काम अटक जाते हैं? कितने ज़रूरी ऑनलाइन पेमेंट नहीं हो पाते, इससे सरकार को कोई वास्ता नहीं है। अनेकानेक लोगों को परेशान करके सरकार अपनी कमियों को छिपाने के उपक्रम में लगी रहती है।

राजस्थान के अफ़सरों की इस मनमानी का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुँच चुका है। सर्वोच्च अदालत इस मामले की याचिका पर होली बाद सुनवाई करने वाली है। निश्चित तौर पर इस तरह के मामलों में कोई उचित और स्थाई समाधान की ज़रूरत है। सुप्रीम कोर्ट ज़रूर इस मामले के समाधान सुझाएगा। वर्ना राज्यों या राज्य सरकारों से तो इस दिशा में किसी सुधार की कोई उम्मीद दिखाई नहीं देती।सही है, राजस्थान के लिए यह चुनावी वर्ष है और ऐसे में राज्य सरकार पेपर लीक जैसे किसी एक और काण्ड की रिस्क लेना नहीं चाहती लेकिन इसके लिए इंटरनेटबंदी का एकमात्र हथियार बार-बार इस्तेमाल करने की बजाय प्रश्नपत्रों की सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ामों पर सख़्ती क्यों नहीं बरती जाती? जिन अफ़सरों के रहते ये पेपर लीक हो रहे हैं, उन पर सख़्ती क्यों नहीं की जाती? उन्हें क्यों नहीं बदला जाता?