World Water Day 2023: हर साल आयोजित होने वाला वार्षिक संयुक्त राष्ट्र दिवस है, जिसे 1993 से हर साल 22 मार्च को मनाया जाता है.World Water Day आयोजित करने का मकसद ताजे पानी के महत्व पर प्रकाश डालना है. साथ ही, मीठे पानी के संसाधनों के स्थायी प्रबंधन की वकालत की जाती है.

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हर साल की थीम का फोकस साफ पानी, सफाई और स्वच्छता से संबंधित विषयों पर होता है, जो सस्टेनेबल डिवेलपमेंट गोल 6 के लक्ष्य के अनुरूप है. वॉटर मैनेजमेंट गोल 2015 में तय किया गया था. संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट (WWDR) भी हर साल वर्ल्ड वॉटर डे के आसपास जारी की जाती है.

भारत की भौगोलिक स्थिति और जलवायु परिस्थितियां अलग-अलग हैं. यहां अलग-अलग जगह पर पानी की मात्रा अलग-अलग है. गर्मियों के दौरान राजस्थान के कई इलाकों में पानी की किल्लत बढ़ जाती है, जो हिमालयन क्षेत्र में रहने वालों से एकदम अलग स्थिति है. हिमालयन एरिया में प्राकृतिक नदियों की वजह से पानी की कोई कमी नहीं होती.

दुनिया की आबादी का 18 फीसदी, लेकिन जल संसाधनों के मामले में इसका हिस्सा महज चार फीसदी है. यही वजह है कि दुनिया के कई हिस्सों में पानी को लेकर विवाद की स्थिति बनी रहती है.भारत सरकार के पॉलिसी थिंक टैंक नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, काफी ज्यादा भारतीय गंभीर जल संकट से जूझते हैं.भारत में नदियां देश के विकास के साथ-साथ संस्कृति की भी रीढ़ रही हैं, सिंधु घाटी सभ्यता व्यावहारिक रूप से नदियों के सिस्टम से ही पनपी थी.

भारतीय नदियों की बात करें तो 12 नदियों को प्रमुख नदियों की श्रेणी में रखा गया है, जो कई अंतर्देशीय जल स्रोतों के साथ-साथ इतने विशाल देश और उसके विशाल कृषि भार की जरूरतों को पूरा करती हैं.भारत में बारिश और ग्लेशियर से निकली नदियों के सिस्टम के साथ-साथ भूजल सिंचाई के साथ-साथ ग्रामीण और शहरी घरेलू जन आपूर्ति के सबसे अहम स्रोतों में से एक है. हालांकि, इस बेशकीमती संसाधन के अतिदोहन से हाल के दिनों में इसकी कमी होने लगी है.

भारत के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पानी की जरूरतें भी अलग-अलग हैं. तेजी से हो शहरीकरण के बावजूद देश के सभी शहरों में पाइप से होने वाली पानी की सप्लाई भी एक समान नहीं है. कई शहरों में लोगों को अब भी दिन में कुछ घंटे के लिए पानी मिलता है. कई बार तो स्थिति ऐसी बन जाती है कि सप्ताह में कुछ ही दिन वॉटर सप्लाई होती है.इससे विशेष रूप से गरीब, महिलाएं और बच्चे प्रभावित होते हैं, जो अपनी दैनिक जरूरतों के लिए पानी जुटाने में पैसा और समय खर्च करते हैं. अनिश्चित बारिश की वजह से भारत में खेती हमेशा से जोखिम वाला व्यवसाय रहा है. कभी सूखा तो कभी मॉनसून के दौरान असामयिक बाढ़ ने समस्या को और ज्यादा बढ़ा दिया.

भारत में खेती देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है, लेकिन गैर-मॉनसून और सिंचाई सुविधाओं के बिना खेती शायद ही संभव है. खेती में देश के जल बजट के बड़े हिस्से की खपत होती है. 2013 की प्रेस इंफर्मेशन ब्यूरो की रिलीज के मुताबिक, देश के कुल जल भंडार का लगभग 78 फीसदी हिस्सा सिंचाई में इस्तेमाल होता है.

जैसा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनियाभर में मौसम का मिजाज अप्रत्याशित हो चुका है और तमाम देश मौसम की वजह से होने वाली त्रासदियों से जूझ रहे हैं. इसी तरह भारत में भी अप्रत्याशित बाढ़ और सूखे की घटनाएं नजर आती रहेंगी. लगातार तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. गौर करने वाली बात यह है कि भारत की अधिकांश प्रमुख नदियां ग्लेशियर से ही निकलती हैं. ऐसे में ग्लेशियर पिघलने का असर नदियों के बहाव पर पड़ सकता है, जिससे आम लोगों की जिंदगी पर गंभीर असर पड़ सकता है.