राहुल की संसद सदस्यता जाने के बाद राजनीतिक घटनाक्रम बहुत तेजी से बदलने की उम्मीद की जा रही है. अगर राहुल को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलती है तो कांग्रेस का भविष्य क्या होगा? कांग्रेस में सोनिया गांधी की उम्र और उनके लगातार बीमार रहने के चलते पहले से ही कयास लग रहे हैं कि अब वो पार्टी की सक्रिय राजनीति से दूर हो रही हैं.
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आखिरकार अब कांग्रेस को कौन संभालेगा , कौन पार्टी की ओर से पीएम कैंडिडेट बनेगा? इस पर लगातार चर्चाओं का बाजार गर्म है. पर गांधी फैमिली में एक ऐसी भी शख्सियत जिस पर कांग्रेस पार्टी ही नहीं आम लोगों को भी लगता है कि वो राहुल से बेहतर राजनीति कर सकती हैं. वर्तमान परिवेश में जब राहुल पहले से कांग्रेस को चुनावी सफलता नहीं दिला पा रहे थे , प्रियंका की राह आसान हो रही है.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता प्रमोद कृष्णन ने अभी इसी हफ्ते एक मीडिया हाउस के लिए लिखते हैं कि अब समय आ गया है कि प्रियंका गांधी को कांग्रेस पीएम कैंडिडेट घोषित करे. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी में कोई कमी है. पर वो संत हैं. उनका कहना था कि बीजेपी और नरेंद्र मोदी से मुकाबला करने के लिए प्रियंका गांधी में ही काबिलियत है. ये बात केवल प्रमोद कृष्णन की तरफ से आई हो ऐसा नहीं है. पहले भी कई कांग्रेसी प्रियंका को काग्रेस में बड़ी भूमिका दिए जाने की मांग कर चुके हैं. पर शायद प्रियंका ही नेतृत्व लेने से बचती रही हैं . पर कांग्रेस को नजदीक से देखने वालों का कहना है कि परिवार में पार्टी पर प्रभुत्व को लेकर संघर्ष तो नहीं है पर सब कुछ ठीक भी नहीं रहा है.
यह सभी जानते हैं कि पार्टी में राहुल गांधी के समर्थकों पर सोनिया के समर्थक भारी पड़ते रहे हैं. राहुल गांधी स्वयं अपने कई दोस्तों का भला नहीं कर पाए . इसी के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कई लोग पार्टी को छोड़कर चले गए. सचिन पायलट आज तक अपनी ताजपोशी को लेकर भटक रहे हैं. पंजाब में सिद्धू-अमरिंदर और चन्नी के बीच जो कुछ हुआ पार्टी पर परिवार के संघर्ष के रूप में ही देखा गया. फिलहाल इस बात के कोई ठोस सबूत न मिलने के चलते ये बातें केवल अफवाहें ही बनकर रह गईं. अब मौके की नजाकत और जरूरत भी है कि प्रियंका आगे बढ़कर कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व संभालें.
प्रियंका को अब तक जो भी काम मिला उन्होंने पूरे लगन से वो काम किया . अभी हाल ही में हिमाचल विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने सोनिया और राहुल की अनुपस्थिति में खुद मोर्चा संभाला और पार्टी को सत्ता में पहुंचाया. हिमाचल की जंग कोई आसान नहीं थी. थोड़ी सी राजनीतिक अदूरदर्शिता से ये जीत फिसल सकती थी. पर प्रियंका सधी हुई पारी खेली . ओपीएस, अग्नीवीर और स्थानीय मुद्दों को टार्गेट करके पार्टी के पक्ष में हवा बनाया . साथ ही गुटबंदी में पड़ी पार्टी को अपने दूरदर्शी नेतृत्व से संकट से बचा ले गईं. नोएडा के वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि प्रियंका गांधी को मौका नहीं मिला, अगर उन पर पार्टी ने भरोसा किया होता तो वो राहुल गांधी से बेहतरीन नेता साबित हुईं होतीं.
एक साल पहले जब कांग्रेस और प्रशांत किशोर अचानक मिलते मिलते रह गए तो इसके पीछे भी प्रियंका का ही कारण थीं. कहा गया कि प्रशांत किशोर चाहते थे कि कांग्रेस में राहुल की जगह प्रियंका मोर्चा संभालें. सोनिया गांधी के साथ करीब 10 दिनों तक चली लंबी बातचीत के बाद अचानक खबर आई कि प्रशांत किशोर पार्टी में शामिल नहीं हो रहे हैं. इसके पहले भी कई बार ऐसे मौके आए जब यह कहा गया कि सोनिया को राहुल पर ज्यादा भरोसा है जिसे पुत्रमोह की भी संज्ञा दी गई.