उज्जैन में महाकाल मंदिर में नाग पंचमी के अवसर पर नागचंद्रेश्वर के पट खोले गए
उज्जैन के महाकाल मंदिर में स्थापित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट खुलेगा यह मंदिर साल में एक बार ही खोले जाते हैं बताया जाता है कि नागचंद्रेश्वर मंदिर में जो प्रतिमाएं रखी हुई है वह विश्व में पहली है एवं इस प्रकार की प्रतिमा कहीं भी नहीं है एवं शंकर भगवान का पूरा परिवार स्थापित किया गया है इसीलिए इस मंदिर को साल में एक बार ही नाग पंचमी के अवसर पर खोला जाता है एवं यज्ञ और महा आरती कर पूजा पाठ की जाती है नाग चंदेश्वर मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं का ता ता लगा हुआ है एवं नाग चंदेश्वर के दर्शन के लिए भीड़ उमड़ रही है उसे श्रद्धालु दर्शन करने के लिए सुबह से ही लंबी कतारों में लगे हुए हैं एवं पूजा अर्चना की जा रही है नाग पंचमी के अवसर पर भारी भीड़ महाकाल मंदिर में लगी हुई है एवं महाकाल के दर्शन के लिए भी श्रद्धालु आ रहे हैं एवं नाग पंचमी में दर्शन किए जा रहे हैं.
माना जाता है कि नागचंद्रेश्वर मंदिर में स्थापित है प्राचीन मूर्ति
माना जाता है कि लगभग 1050 ईस्वी में परमार राजा भोज ने इस मंदिर का निर्माण कराया था, इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया में 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। वर्ष में एक बार होने वाले भगवान श्री नागचंद्रेश्वर जी के दर्शन।
हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का,जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं, नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी, उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।
पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।
क्या है पौराणिक मान्यता
सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी, तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है, यह मंदिर काफी प्राचीन है, माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था, उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए। लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं।