झारखंड के गिरिडीह जिले में आज भी बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं. इसका जीता-जागता उदाहरण गांवा प्रखंड के डाबर गांव में देखने को मिला. डाबर गांव के लोग नदी पार कर अपने रोजमर्रा के काम को निपटाते हैं. हालांकि गांव वालों के सामने विकट स्थिति तब उत्पन्न हो जाती है, जब कोई बीमार हो जाता है और उसे अस्पताल में एडमिट कराने की नौबत आ जाती है. नदी पर पुल न होने के कारण एंबुलेंस गांव तक नहीं आ पाती. गांव वाले बीमार व्यक्ति को खाट पर लाद कर नदी उस पर ले जाते हैं, इस दौरान समय से इलाज न मिलने के कारण कई मरीजों की मौत हो जाती है.
दरअसल, डाबर गांव की रहने वाली सरस्वती देवी (60) अपने घर से कुछ दूर मंदिर के पास बैठी हुई थीं. अचानक गिरी बिजली की चपेट में आकर वह झुलस गईं और अचेत होकर वहीं गिर पड़ीं. आनन-फानन में परिजनों ने एंबुलेंस को फोन किया, लेकिन नदी में बाढ़ होने के कारण एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच पाई और वापस लौट गई. परिजन और स्थानीय लोग सरस्वती देवी को खाट पर लिटाकर चार किमी दूर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने सरस्वती देवी को मृत घोषित कर दिया.
आज तक गांव में नदी पर नहीं बन पाया पुल
गांवा प्रखंड के सेरूवा पंचायत के मुखिया गुरु सहाय रविदास और पंचायत समिति सदस्य प्रदीप चौधरी ने बताया कि कई बार नदी पर पुल बनाने के लिए जनप्रतिनिधियों से आग्रह किया गया, बावजूद इसके आज तक गांव पहुंचने के लिए सड़क नहीं बन पाई. अगर, गांव तक पहुंचने के लिए सड़क होती तो शायद आज सरस्वती देवी की इलाज में देरी के कारण मौत नहीं होती.
इससे पहले भी एक महिला की जा चुकी है जान
बता दें कि झारखंड में यह कोई पहली घटना नहीं है. इससे पूर्व अगस्त के महीने में सिमडेगा जिला के पांगुर पूरनापानी गांव की रहने वाली गर्भवती महिला बसंती लुगुन को प्रसव पीड़ा होने पर ग्रामीणों के द्वारा खटिया पर लिटाकर अस्पताल ले जाने की तैयारी की जा रही थी, चूंकी गांव में पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी तो एंबुलेंस नहीं पहुंच पाई. अस्पताल ले जाने से पूर्व ही महिला ने एक बच्चे को जन्म दे दिया. बच्चे के जन्म के उपरांत महिला बसंती लुगुन की तबीयत बिगड़ने लगी. उसे खटिया पर लिटाकर परिजन बानो सीएचसी पहुंचे, लेकिन वहां डॉक्टरों ने बसंती लुगुन को मृत घोषित कर दिया.