वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट में दो हफ्ते तक सुनवाई टल गई है. चीफ जस्टिस ने कहा कि कोर्ट पहले इस पर विचार करेगा कि क्या ज्ञानवापी परिसर में मौजूद श्रृंगार गौरी/देवताओं की मूर्तियों की नियमित पूजा अर्चना के अधिकार की मांग वाली हिंदू पक्ष की याचिका सुनवाई लायक है या नहीं.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इन याचिकाओं को सुनवाई लायक माना था. मुस्लिम पक्ष ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
पहले से लंबित दो अर्जियों पर भी सुनवाई की मांग
मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट से मांग की कि अदालत इस केस मेंटेनबिलटी के साथ-साथ पहले से लंबित उनकी दो अर्जियों पर भी (एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति और वजुखाने के ASI सर्वे, कार्बन डेटिंग के खिलाफ) सुनवाई करे. हालांकि हिंदू पक्ष ने इस पर एतराज जाहिर करते हुए कहा है कि परिसर के सर्वे हो जाने के बाद ये मांग अब निष्प्रभावी हो गई है.
हिंदू पक्ष का केस सुनवाई लायक नहीं
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के चलते हिंदू पक्ष का केस सुनवाई लायक ही नहीं है. इस क़ानून के मुताबिक किसी भी धार्मिक स्थल का स्वरूप वही बरकरार रहेगा जो आजादी के वक़्त यानि 15अगस्त 1947 को था, उसे बदला नहीं जा सकता है.
क्या है श्रृंगार गौरी का मामला?
18 अगस्त 2021 को पांच महिलाओं ने वाराणसी में सिविल जज के सामने एक वाद दायर किया था. इसमें इन महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजन और दर्शन की मांग की थी. इस मामले में सुनवाई के बाद जज रवि कुमार दिवाकर ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया था.
वहीं कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे किया गया. जिसके बाद हिंदू पक्ष ने वजुखाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया. वहीं मुस्लिम पक्ष ने कहा कि यह शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है. वहीं बाद में सुप्रीम कोर्ट ने यह केस जिला जज को सौंप दिया था.
ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी विवाद में हिंदू पक्ष की मांग है कि यहां से ज्ञानवापी मस्जिद को हटाकर पूरी जमीन हिंदुओं को दे दी जाए. हिंदू पक्ष यह भी दावा करता है कि यह मस्जिद मंदिर के अवशेषों पर बनी है.
वहीं मुस्लिम पक्ष इसे मस्जिद ही बताता है. साथ ही दावा करता है कि ज्ञानवापी में आजादी से पहले से नमाज पढ़ी जाती रही है. उनकी दलील है कि इस पर 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट भी लागू होता है.