ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में किए गए सर्वे की रिपोर्ट भारतीय पुरातत्व विभाग ने जिला अदालत में पेश कर दी है. सील बंद लिफाफे में रिपोर्ट पेश की गई है. मुस्लिम पक्ष ने रिपोर्ट दाखिल किए जाने से पहले एक याचिका दायर की थी और रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं किए जाने की मांग की थी. एएसआई ने 1500 पन्नों की रिपोर्ट पेश की है. वाराणसी के जनपद न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में ज्ञानवापी सर्वे की रिपोर्ट पेश की गई है.रिपोर्ट लेकर एएसआई की टीम अपने वकील के साथ जिला जज कोर्ट में मौजूद रहे.

कोर्ट में हिन्दू पक्ष के वकील विष्णुशंकर जैन, सुधीर त्रिपाठी, सुभाष नंदन चतुर्वेदी, मान बहादुर सिंह, महेंद्र प्रसाद पाण्डेय डीजीसी सिविल वाराणसीए वादी मंजू व्यास, सीता साहू, लक्ष्मी देवी, रेखा पाठक मौजूद रहे. मुस्लिम पक्ष के वकील भी कोर्ट में मौजूद रहे. हिंदू चिह्न और प्रतीक से संबंधित लेखों की सूची के साथ सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की गई है. मामले में अगली सुनवाई के लिए 21 दिसंबर की तारीख तय की गई है.

सील बंद लिफाफे में रिपोर्ट पेश करने का विरोध

हिंदू पक्ष ने रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में पेश किए जाने का विरोध किया है. हिंदू पक्ष के एक वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि ये सुप्रीम कोर्ट का वायलेशन है. सीलबंद में कॉपी दी गई है. ये बिल्कुल गलत है. मुस्लिम पक्ष कह रहा है कि किसी को रिपोर्ट न दिखाई जाए. हमने रिपोर्ट की कापी के लिए अर्ज़ी डाली है. सभी पक्षकारों को रिपोर्ट की कॉपी मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि 21 तारीख का इंतजार करेंगे, फिर देखेंगे.

कब शुरू हुआ ज्ञानवापी विवाद

ज्ञानवापी मामला उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच एक जटिल कानूनी विवाद है. इस मामले की शुरुआत 1991 में हिंदू पक्ष द्वारा दायर एक याचिका के साथ हुई थी. आरोप लगाया गया था कि मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर भगवान विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर किया गया था. इससे मस्जिद परिसर पर अधिकार की कानूनी लड़ाई शुरू हुई.