दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में ट्रांसप्लांटेशन से जुड़े आवेदनों, दस्तावेजों के सत्यापन आदि के लिए समयसीमा तय कर दी है. इससे उन मरीजों को बहुत राहत मिलेगी जिन्हें ट्रांसप्लांटेशन के लिए भटकना और लंबा इंतजार करना पड़ता है. जस्टिस प्रथिबा एम सिंह ने कहा है कि मानव अंगों के प्रत्यारोपण नियम 2014 के रुल 10 के तहत इसके आवेदन को 10 दिनों के भीतर प्रक्रिया में लाना जरूरी है और वहीं दस्तावेजों के सत्यापन पर अधिकतम 14 दिनों के भीतर विचार किया जाना चाहिए.कोर्ट ने ये भी कहा कि 2014 के नियमों के मुताबिक जरूरी दस्तावेज पूरा करने के लिए दिए गए किसी भी अवसर के बारे में पहले सूचित किया जाना चाहिए. जवाब देने के लिए अधिकतम एक सप्ताह का समय दिया जाना चाहिए. यदि इसके बाद भी समय देने की जरूरत है तो उचित विचार-विमर्श के बाद अवधि को बढ़ाया जा सकता है. कोर्ट ने जोर देकर कहा कि पूरी प्रक्रिया शुरू करने से लेकर निर्णय तक 6 से 8 सप्ताह से अधिक समय नहीं लगना चाहिए.

वायु सेना के पूर्व अधिकारी की याचिका पर सुनवाई

दरअसल हाईकोर्ट ने भारतीय वायु सेना के एक सेवानिवृत्त अधिकारी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया, जिन्हें मार्च 2017 में किडनी फेल होने का पता चला था. जिसके बाद दिसंबर 2018 में गुड़गांव के एक अस्पताल ने प्रीमेप्टिव रीनल ट्रांसप्लांट की सिफारिश की. जबकि याचिकाकर्ताओं ने कई दस्तावेज इकट्ठा किए और उन्हें अस्पतालों को मुहैया कराया लेकिन उनकी याचिका पर कोई निर्णय नहीं लिया गया.

पूर्व अधिकारी को हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ा

अंततः वे हाईकोर्ट गये. 24 फरवरी 2021 को हाईकोर्ट ने प्राधिकार समिति को दो सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का आदेश दिया. अक्टूबर 2021 में जब मामला दोबारा उठाया गया तो कोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ता की मृत्यु हो चुकी है. न्यायालय ने मामले को जारी रखने का फैसला किया और ट्रांसप्लांटेशन से जुड़ी प्रक्रियाओं और चरणों के लिए समयसीमा निर्धारित करने पर दलीलें सुनीं.

जिसके बाद कोर्ट ने मामले पर विचार किया और निष्कर्ष निकाला कि मानव अंगों के प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 और मानव अंगों के प्रत्यारोपण नियम 2014 से पता चलता है कि अंग दान के लिए मंजूरी देने की प्रक्रिया में तेजी लाने की दरकार है. न्यायालय ने पाया कि समय-सीमा का पालन न करने के परिणामस्वरूप कुछ मामलों में इंतजार लंबा हो जाता है, यह दो-तीन साल भी खिंच जाता है जो कि 1994 के अधिनियम और 2014 के नियमों की भावना के विपरीत है.