लगातार 5वीं बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनी शेख हसीना

बांग्लादेश में जो तय था, वही हुआ. शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग संसदीय चुनाव जीत गई है. बस जीत का आधिकारिक ऐलान बाकी है. पांचवी बार शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं. आज की जीत के बाद अब 2028 तक बांग्लादेश की कमान शेख हसीना के हाथों में होगी. इस जीत के बाद हसीना के नाम यह रिकॉर्ड भी दर्ज हो गया है जहां वह दुनिया की सबसे लंबे समय तक महिला प्रधानमंत्री रहने वाली नेता बन गईं हैं.

अगर हम कुछ चर्चित महिला नेताओं से तुलना करें तो इंदिरा गांधी करीब 16 साल, जर्मनी की चांसलर रहीं एंजेला मर्केल ने भी 16 साल तक देश की कमान संभाला था. वहीं शेख हसीना के पहले कार्यकाल को अगर जोड़ दें तो वह 20 साल लगातार प्रधानमंत्री रह चुकी हैं और अगले पांच साल भी वही इस पद पर रहेंगी.

हाल में अगर देखें तो 2009 से लगातार शेख हसीना इस पद पर हैं. आखिरी दफा 2018 में वह चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री निर्वाचित हुईं थीं. शेख हसीना बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई के अग्रदूत रहे और मुक्ति संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाले बंग बंधु शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं. वह लगातार चौथी बार और कुल मिलाकर पांचवी बार देश की प्रधानमंत्री बनने जा रहीं हैं.

हसीना का शुरुआती जीवन

शेख हसीना का जन्म सितंबर 1947 में तब के पूर्वी बंगाल के टुंगीपारा में हुआ. हसीना का जन्म बंगाली मुस्लिम शेख परिवार में हुआ. अपनी मां और दादी के देखरेख में हसीना का बचपन टुंगीपारा ही में बीता. बाद में हसीना का परिवार ढाका चला आया. ढाका ही में एक जगह है सेगुनबागीचा, यहीं ढाका आने के बाद हसीना का परिवार रहने लगा. हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान बंगाली राष्ट्रवादी नेता थे. उनकी मां का नाम बेगम फाजीलातुनेसा मुजीब था.

हसीना की पढ़ाई-लिखाई, राजनीति

पाकिस्तान बनने के बाद जब शेख मुजीबुर सरकार में मंत्री बने तो हसीना का परिवार 3 मिंटो रोड पर रहने लगा. हसीना के पिता राजनीतिक गतिविधियों के अलावा एक अल्फा इंश्यूरेंस कंपनी के लिए भी काम किया करते थे. हसीना ने अपने कई इंटरव्यू में यह कहा है कि वह अपने पिता के साथ कम समय बीता पाईं क्योंकि ज्यादातर समय पाकिस्तानी सरकार ने उनके पिता को कैद में रखा.

हसीना ने टुंगीपारा से शुरुआती पढ़ाई लिखाई पूरी करने के बाद ढाका के आजीमपुर गर्ल्स स्कूल को जॉइन किया. यहीं के इडेन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. यहीं हसीना छात्र राजनीति करने लगीं. इडेन कॉलेज में स्टूडेंट यूनियन का वाइस प्रेसिडेंट भी चुनी गईं. हसीना की शादी एम. ए. वाजेद मियां से हुई जो एक न्यूक्लियर साइंटिस्ट थे.

1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद शेख हसीना की राजनीतिक समझ पुख्ता हुई. खासकर तब जब 1975 में उनके पिता मुजीबुर रहमान की हत्या हुई, हसीना को निर्वासन में जाना पड़ा. इसके बाद 1980 के आखिर में शेख हसीना बांग्लादेश की राजनीति में लौटीं. 1981 में हसीना पिता की पार्टी आवामी लीग की अध्यक्ष चुनी गईं. उसके बाद से लगातार वह विपक्ष में मोर्चा थामें रहीं.